श्री गणेश जी की आरती, Shri Ganesh ji ki aarti
Shri Ganesh ji ki aarti ने सभी देवताओं की आरती में प्रथम स्थान प्राप्त किया है, अर्थात किसी भी पूजा के अंत में सबसे पहले भगवान गणेश की आरती की जाती है। दरअसल, गणेशजी की आरती एक नहीं बल्कि तीन-तीन होती है। आज हम आपको भगवान गणेश की सबसे प्रसिद्ध आरती जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा के साथ उनकी दो और आरतियां बताएंगे।
इस लेख की शुरुआत गणेश वंदना और उसके अर्थ से होगी। उसके बाद आपको भगवान गणेश की प्रसिद्ध आरती का अर्थ सहित पढ़ने को मिलेगा।
भगवान गणेश जी की आरती (Ganesh ji ki aarti lyrics in Hindi)
गणेश वंदना (Ganesh Vandana in Hindi)
खर्वं स्थूलतनुं गजेन्द्रवदनं लम्बोदरं सुन्दरं
प्रस्यन्दन्मदगन्धलुब्धमधुपव्यालोलगण्डस्थलम्।
दन्ताघातविदारितारिरुधिरै सिन्दूरशोभाकरं
वन्दे शैलसुतासुतं गणपतिं सिद्धिप्रदं कामदम्।।
अर्थ: मैं सिद्धि प्रदान करने वाले, निर्भयता प्रदान करने वाले, माता पार्वती के पुत्र भगवान गणेश की वंदना करता हूं। वे कद में छोटे, शरीर में मोटे, हाथी के समान चेहरा, लंबे पेट वाले होते हैं, लेकिन वे बहुत सुंदर और आकर्षक होते हैं।
उनके मंदिरों से निकलने वाली मधुर गंध और उनकी आकर्षक भौंहों से पता चलता है कि वे बहुत चंचल हैं, यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि उनके दांतों से मारे गए राक्षसों का खून ही उनकी सुंदरता को बढ़ाता है।
गणेश आरती लिरिक्स हिंदी में (Ganesh Aarti Lyrics in Hindi)
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा।।
एकदन्त दयावन्त चार भुजा धारी।
मस्तक सिन्दूर सोहे मूसे की सवारी।।
पान चढ़ें फूल चढ़ें और चढ़ें मेवा।
लडुवन कौ भोग लगे सन्त करें सेवा।।
अन्धन को आँख देत कोढ़िन को काया।
बाँझन को पुत्र देत निर्धन को माया।।
दीनन की लाज राखो शम्भु-सुत वारी।
कामना को पूरा करो जगत बलिहारी।।
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा।।
सूरश्याम शरण आये सफल कीजे सेवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा।।
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा।।
गणेश जी की आरती हिंदी में लिखी हुई अर्थ सहित (Ganesh Aarti Ka Arth)
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा, माता जाकी पार्वती पिता महादेवा।
जय श्री गणेश, जय जय, जय जय जय। आपकी माता का नाम पार्वती है, और आपके पिता का नाम स्वयं महादेव है।
एकदन्त दयावन्त चार भुजा धारी, मस्तक सिन्दूर सोहे मूसे की सवारी।
आपके एक दांत हैं, आप दयालु और कोमल हैं। आपके चार हाथ हैं और आपके माथे पर सिंदूर है। आप चूहे की सवारी करते हैं।
पान चढ़ें फूल चढ़ें और चढ़ें मेवा, लडुवन कौ भोग लगे सन्त करें सेवा।
आपकी पूजा में पान, फूलों और मेवा का चढ़ावा चढ़ाया जाता हैं। साथ ही आपको लड्डू अत्यधिक प्रिय हैं, इसलिए आपकी पूजा में उनका भी भोग लगाया जाता हैं। संत हमेशा आपकी सेवा में तत्पर रहते हैं।
अन्धन को आँख देत कोढ़िन को काया, बाँझन को पुत्र देत निर्धन को माया।
यदि आप किसी अंधे व्यक्ति को आंखें देंगे तो आप किसी कोढ़ी को स्वस्थ शरीर देंगे। इतना ही नहीं, आप बांझ को भी पुत्र उत्पन्न करने का आशीर्वाद देते हैं और धन से गरीबों की जेब भरते हैं।
दीनन की लाज राखो शम्भु-सुत वारी, कामना को पूरा करो जग बलिहारी।
हे भगवान गणेश, जो सभी के साथ दयालु व्यवहार करते हैं, सभी गरीब भाइयों का सम्मान करते हैं और समाज में उनकी प्रतिष्ठा बढ़ाते हैं। हे ब्रह्मांड के पालनहार, आपने हमारी सभी इच्छाओं को पूरा किया और हमें बचाया।
सूरश्याम शरण आये सुफल कीजे सेवा, माता जाकी पार्वती पिता महादेवा।
हे श्री गणेश, हम सब प्रातः और सायंकाल आपकी पूजा और वन्दना करते हैं। आपके माता-पिता पार्वती और शिव हैं।
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गणेश आरती 2: जय गणेश की आरती (Jay Ganesh Aarti)
आरति गजवदन विनायक की।
सुर मुनि पूजित गणनायक की।।
एकदन्त शशिभाल गजानन,
विघ्नविनाशक शुभगुण कानन,
शिवसुत वन्द्यमान चतुरानन,
दुःखविनाशक सुखदायक की।।
ऋद्धि-सिद्धि स्वामी समर्थ अति,
विमल बुद्धि दाता सुविमल मति,
अघ वन दहन, अमल अबिगत गति,
विद्या विनय विभव दायक की।।
पिंडलनयन विशाल शुंडधर,
धूम्रवर्ण शुचि वज्रांकुश कर,
लम्बोदर बाधा विपत्ति हर,
सुर वन्दित सब विधि लायक की।।
गणेश आरती 3: श्री गणेश जी की आरती (Ganesh Ji Aarti)
श्रीगणपति भज प्रगट पार्वती,
अंक बिराजत अविनासी।।
ब्रह्मा-विष्णु-शिवादि सकल सुर,
करत आरती उल्लासी।।
त्रिशूलधरको भाग्य मानिकैं,
सब जुरि आये कैलाशी।।
करत ध्यान गंधर्व गान-रत,
पुष्पं की हो वर्षा सी।।
धनि भवानी व्रत साधि लह्यो जिन,
पुत्र परम गोलोकाशी।।
अचल अनादि अखंड परात्पर,
भक्त हेतु भव परकाशी।।
विद्या बुद्धि निधान गुनाकर,
विघ्नविनासन दुःखनासी।।
तुष्टि पुष्टि शुभ लाभ लक्षिम संग,
रिद्धि सिद्धि सी हैं दासी।।
सब कारज जग होत सिद्ध शुभ,
द्वादस नाम कहे छासी।।
कामधेनु चिंतामणि सुरतरु,
चार पदारथ देतासी।।
गज आनन् शुभ रदन इक,
सुंडी ढुंढी पुर पूजा सी।।
चार भुजा मोदक करतल सजि,
अंकुश धारत फरसा सी।।
ब्याल सूत्र त्रयनेत्र भाल ससि,
उन्दुरवाहन सुखरासी।।
जिनके सुमिरन सेवन करते,
टूट जात जमकी फांसी।।
कृष्णपाल धरि ध्यान निरंतर,
मन लगाय जो कोई गासी।।
दूर करैं भवकी बाधा प्रभु,
मुक्ति जन्म निजपद पासी।।
गणेश जी को लगाएं ये भोग:
कृपया आरती के समय गणपति बप्पा को भोग अवश्य लगाएं। गणपति को मोदक अत्यंत प्रिय हैं और इसके अलावा मोतीचूर के लड्डू, नारियल चावल, पूरन पोली, केले का शीरा, हलवा आदि भी चढ़ा सकते हैं।